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होटल में खाने-पीने की कीमत का कमरे के किराए से कैसा कनेक्‍शन, क्‍या है नया प्रपाेजल?

नई दिल्ली: फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) ने सरकार से खाद्य और पेय (एफ एंड बी) सेवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों को होटल आवास शुल्क से अलग करने का कहा है. एफएचआरएआई ने कहा कि इस कदम से न केवल कराधान सरल होगा, बल्कि मेहमानों को बचत भी होगी.

एक बयान में, एफएचआरएआई ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान जीएसटी संरचना – जहां एफ एंड बी कराधान होटल के कमरे के टैरिफ से जुड़ा हुआ है – आतिथ्य क्षेत्र के लिए अनुचित और अव्यवहारिक दोनों है. एसोसिएशन ने अधिकारियों को एक नीति बदलाव के लिए कई प्रतिनिधित्व दिए हैं जो जमीनी हकीकत को दिखाते हैं.

मौजूदा नियमों के अनुसार, प्रति रात प्रति कमरा 7,500 रुपये या उससे अधिक शुल्क लेने वाले होटलों को अपनी F&B सेवाओं पर 18 फीसदी GST लगाना होगा. लेकिन वे इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा कर सकते हैं. दूसरी ओर, उस सीमा से कम कमरे के किराए वाले होटलों में रेस्तरां को केवल 5 फीसदी GST लगाना होगा. लेकिन ITC का लाभ नहीं मिलेगा. इस दोहरी संरचना ने परिचालन संबंधी उलझन पैदा की है और होटल व्यवसायियों के लिए अनुपालन बोझ बढ़ा दिया है.

कमरे के किराए से जीएसटी को अलग करने का कहा

एफएचआरएआई ने एक लचीली प्रणाली का प्रस्ताव दिया है, जिससे सभी होटल रेस्तरां स्वतंत्र रूप से कमरे के किराए के बावजूद आईटीसी के साथ 18 प्रतिशत जीएसटी या आईटीसी के बिना 5 फीसदी का विकल्प चुन सकते हैं. इस विशेष जीएसटी को अलग करने के हमारे अनुरोध के संबंध में, जो कि आज 7,500 रुपये की सीमा है, जिसके परिणामस्वरूप जैसे ही कोई होटल 7500 रुपये से अधिक का कमरा बेचता है. एफएचआरएआई के उपाध्यक्ष प्रदीप शेट्टी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि उसी होटल के रेस्तरां के लिए जीएसटी दर 5 फीसदी से 18 फीसदी हो जाती है. इसलिए हमने इसे अलग करने का अनुरोध किया है.

होटल और रेस्तरां एसोसिएशन ने यह भी सुझाव दिया है कि इस लिंकेज को हटा दिया जाना चाहिए या वैकल्पिक रूप से 7,500 रुपये की बेंचमार्क या सीमा को 12,500 रुपये कर दिया जाना चाहिए, जिसमें 2017 से मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाना चाहिए जब पहली बार 7,500 रुपये का यह बेंचमार्क निर्धारित किया गया था.

जीएसटी दरें और कम होंगी! निर्मला सीतारमण ने दिया संकेत, कहा- स्लैब की हो रही समीक्षा

इनकम टैक्स रेट में कमी के बाद अब जीएसटी रेट्स कम होने वाली है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद इस बात के संकेत दिए हैं. वित्त मंत्री ने कहा, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स रेट और स्लैब को युक्तिसंगत बनाने का काम लगभग अंतिम चरण में है और जल्द ही रेट्स को घटाने का फैसला लिया जाएगा.

निर्मला सीतारमण ने ‘द इकोनॉमिक टाइम्स अवार्ड्स’ में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ”जीएसटी दरों और स्लैब को युक्तिसंगत बनाने का काम लगभग अपने आखिरी फेज में है. उन्होंने कहा कि राजस्व तटस्थ दर (आरएनआर) एक जुलाई, 2017 को जीएसटी की शुरुआत के समय 15.8 प्रतिशत से घटकर 2023 में 11.4 प्रतिशत हो गई है, और इसमें और कमी आएगी. वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली जीएसटी काउंसिल ने सितंबर 2021 में दरों को युक्तिसंगत बनाने और स्लैब में बदलाव का सुझाव देने के लिए मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन किया था.

वित्त मंत्री ने कहा, जीओएम ने बेहतरीन काम किया है, लेकिन अब इस चरण में मैंने एक बार फिर से प्रत्येक समूह के काम की पूरी तरह से समीक्षा करने का बीड़ा उठाया है, और फिर शायद मैं इसे परिषद के पास ले जाऊंगी. तब विचार किया जाएगा कि हम इस बारे में अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं या नहीं.” निर्मला सीतारमण ने कहा कि दरों को तर्कसंगत बनाने पर कुछ और काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ”हम इसे अगली काउंसिल की बैठक में ले जाएंगे। हम कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों, जैसे दरों में कटौती, तर्कसंगत बनाने, स्लैब की संख्या पर विचार करने आदि पर अंतिम निर्णय लेने के बहुत करीब हैं.”

दरअसल सरकार पर डिमांड और खपत को बढ़ावा देने का दबाव है जिसके लिए जीएसटी काउंसिल अब जीएसटी रेट्स में कटौती करने पर विचार कर रही है. ये माना जा रहा है कि सरकार 12 फीसदी के स्लैब वाले जीएसटी रेट को खत्म कर सकती है. और इस स्लैब में आने वाले गुड्स को 5 फीसदी या जरूरत पड़ने पर 18 फीसदी के स्लैब में डाल सकती है. इस कवायद का मकसद जीएसटी रेट स्ट्रक्चर को तर्कसंगत बनाने के साथ खपत को बढ़ाना है.

दरअसल लंबे समय से यह मांग उठ रही है कि जीएसटी के स्लैब में बदलाव किया जाए और दरों को तार्किक बनाया जाए. अभी जीएसटी के तहत टैक्स के चार स्लैब हैं. वे चार स्लैब 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी के हैं. कुछ लग्जरी व सिन आइटम पर अलग से सेस का प्रावधान है. जीएसटी के स्लैब की संख्या को 4 से घटाकर 3 करने की डिमांड उठती रही है.

Debit Card के बिना भी UPI पिन किया जा सकता है सेट, जानें स्टेप बाय स्टेप पूरा प्रोसेस

नई दिल्ली: इसमें कोई संदेह नहीं है कि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने डेली ट्रांजैक्शन की दुनिया को बदल दिया है. जहां पहले हर कोई जेब में कैश लेकर चलता था. वहीं अब आपको पैसे ट्रांसफर करने के लिए बस अपने मोबाइल फोन की जरूरत है.

किराने का सामान खरीदने से लेकर किसी को पैसे भेजने तक और शॉपिंग से लेकर बिजली के बिल का पेमेंट करने तक आपको UPI सेकंडों में लेन देन पूरा करने की सुविधा देता है. इसके लिए आपको बस एक रजिस्टर मोबाइल नंबर या UPI आईडी की जरूरत होती है.

आमतौर पर डेबिट कार्ड होता है इस्तेमाल

गौरतलब है कि UPI ट्रांजैक्शन से पेमेंट करने के लिए आपको चार या छह अंकों का UPI पिन डालना होता, जो यह पुष्टि करता है कि पेमेंट सही यूजर्स द्वारा किया जा रहा है. आम तौर पर इस पिन को सेट करने के लिए डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन अब आप आधार कार्ड की मदद से भी UPI का पिन सेट कर सकते हैं.

UPI पिन सेट करने के दो विकल्प

हैरानी की बात है कि बहुत कम लोग जानते हैं कि नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) UPI पिन सेट करने के लिए दो विकल्प प्रदान करता है, तो चलिए अब आपको बताते हैं कि बिना डेबिट कार्ड के आप अपना यूपीआई पिन कैसे सेट कर सकते हैं?

उल्लेखनीय है कि आधार के जरिए UPI पिन सेट करने के लिए आपका फोन नंबर आपके आधार नंबर से जुड़ा होना चाहिए. आपका मोबाइल नंबर आपके बैंक अकाउंट में रजिस्टर होना चाहिए.

डेबिट कार्ड के बिना UPI पिन सेट कैसे करें?

  • अपना UPI ऐप ओपन करें और अपने बैंक अकाउंट की डिटेल दर्ज करें.
  • अब UPI पिन सेटअप का विकल्प चुनें.
  • आधार का ऑप्शन सेलेक्ट करें.
  • वेरिफिकेशन के लिए अपने आधार नंबर के पहले छह अंक दर्ज करें.
  • अपने रजिस्टर मोबाइल नंबर पर प्राप्त OTP दर्ज करें.
  • इसके बाद आपसे UPI पिन बनाने के लिए कहा जाएगा.
  • नया पिन सेट करें, OTP फिर से दर्ज करें और अपने UPI पिन की पुष्टि करें.

नो-कॉस्ट EMI क्या है? जानें कितना फायदा, कितना नुकसान

नई दिल्ली: भारत में क्रेडिट कार्ड पर नो-कॉस्ट EMI सुविधा का चलन बढ़ रहा है, खास तौर पर फेस्टिव सीजन के दौरान. नो-कॉस्ट EMI के जरिए ग्राहक ब्याज का अतिरिक्त बोझ उठाए बिना प्रीमियम प्रोडक्ट खरीद सकते हैं. इतना ही नहीं वे आसान और सुविधाजनक मासिक किस्तों पर पैसों का भुगतान कर सकते हैं.

क्रेडिट कार्ड यूजर्स को आसान और निर्बाध खरीदारी की सुविधा प्रदान करता है और संबंधित कार्ड जारी करने वाले वित्तीय संस्थान द्वारा स्थापित नियमों और शर्तों के अनुसार रिपेमेंट का एक व्यवस्थित तरीका प्रदान करता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह वाकई एक अच्छी डील है?

नो-कॉस्ट EMI को समझें

नो-कॉस्ट EMI एक पेमेंट मैथड है, जिसमें कार्डहोल्डर किसी वस्तु की कीमत को निश्चित मासिक पेमेंट में विभाजित कर सकते हैं और कीमत वही होती है, जिस पर वस्तु खरीदी गई थी. यह कुछ अनोखा लगता है क्योंकि यह ग्राहकों को सीधे भुगतान किए बिना महंगी वस्तुएं खरीदने में सक्षम बनाता है. अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे बड़े ई-कॉमर्स पोर्टल और रिटेल स्टोर HDFC बैंक, SBI और ICICI बैंक जैसे बड़े बैंकों के साथ साझेदारी में यह सेवा प्रदान करते हैं.

नो-कॉस्ट EMI कैसे काम करती है?

सरल शब्दों में कहें तो नो-कॉस्ट एक तरह से भ्रामक है. इसके के इस्तेमाल करने से पहले इससे जुड़े नियमों और शर्तों को ध्यान से समझना चाहिए. दरअसल, नो-कॉस्ट EMI योजना के तहत ग्राहकों को स्पष्ट रूप से ब्याज का भुगतान नहीं करना पड़ता है, ब्याज लागत आमतौर पर व्यापारी द्वारा वहन की जाती है या प्रोडक्ट की कीमत के एक कंपोनेंट के रूप में पेमेंट की जाती है.इसके अलावा बैंक कुछ मामलों में प्रोसेसिंग फीस भी लेते हैं, जो राशि का 1 से 3 प्रतिशत हो सकता है.

भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसी योजनाओं के खिलाफ चेतावनी दी है क्योंकि इनमें प्रोडक्ट की कीमतों या प्रोसेसिंग फीस के रूप में शुल्कों को छिपाकर उचित मूल्य निर्धारण मानदंडों का उल्लंघन करने की क्षमता है.आवेदकों को हमेशा आवेदन करने से पहले ऑफर के नियम और शर्तों को ध्यान से पढ़ना चाहिए.

नो-कॉस्ट EMI के फायदे

इसमें स्मॉल पेमेंट की सुविधा मिलती है और यहबड़ी राशि को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने में मदद करता है. इसमें तुरंत कर्ज मिल जाता है. वहीं, इसमें पुनर्भुगतान शर्तें लचीली और आसान होती हैं, जिससे लोन का भुगतान करना आसान होता है.

नो-कॉस्ट EMI के नुकसान

नो-कॉस्ट EMI में हिडन चार्जेस या प्रोसेसिंग फीस ली जा सकती है, जिससे वस्तु की कीमत अधिक हो सकती है. इसके अलावा अगर आप किस्त का भुगतान करने में विफल हो जाते हैं तो इसका प्रभाव आपके क्रेडिट स्कोर पर पड़ सकता है. खरीदारी में आसानी के कारण कई बार ग्राहक गैर जरूरी सामान खरीदने लेते हैं.

क्रेडिट कार्ड की नो कोस्ट ईएमआई एक महंगी खरीद के लिए धन जुटाने में काफी मददगार हो सकती है, लेकिन आपको इसके वित्तीय तनाव , छुपे हुए नियमों, शर्तों और हिडन चार्जेस ध्यान देना चाहिए.

Paytm को ED से मिला 611 करोड़ रुपये का नोटिस, इस मामले में की गई कार्रवाई

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने One97 Communication Ltd (Paytm की पैरेंट कंपनी) और इसके मैनेजिंग डायरेक्टर समेत अन्य संबंधित कंपनियों को फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA), 1999 के उल्लंघन के मामले में शोकॉज नोटिस (SCN) जारी किया है. इस मामले में कुल 611 करोड़ रुपये की अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है.

क्या है मामला?

ED की जांच में पता चला कि One97 Communication Ltd (OCL) ने सिंगापुर में विदेशी निवेश किया, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को इसकी जरूरी रिपोर्टिंग नहीं की. इसके अलावा, कंपनी को विदेशी निवेशकों से फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) भी मिला, लेकिन इसमें RBI द्वारा तय किए गए प्राइसिंग नियमों का पालन नहीं किया गया.

अन्य कंपनियों पर भी गड़बड़ी का आरोप

1. Little Internet Pvt Ltd – यह OCL की एक सब्सिडियरी कंपनी है, जिसे विदेशी निवेश मिला, लेकिन निवेश नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया.

2. Nearbuy India Pvt Ltd – इस कंपनी को भी विदेशी निवेश मिला, लेकिन समय सीमा के अंदर इसकी रिपोर्टिंग नहीं की गई.

आगे क्या होगा?

ED ने यह नोटिस जारी कर FEMA, 1999 के तहत एडजुडिकेशन (न्यायिक प्रक्रिया) शुरू करने की तैयारी कर ली है. अगर जांच में उल्लंघन साबित होता है, तो इन कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है.

पूर्व SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच और अन्य पांच के खिलाफ FIR के आदेश, सपोर्ट में आए सेबी और बीएसई करेंगे अपील

मुंबई: एक विशेष अदालत ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को शेयर बाजार में कथित धोखाधड़ी और विनियामकीय उल्लंघन के संबंध में शेयर बाजार नियामक सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया है.

मुंबई स्थित विशेष एसीबी अदालत के न्यायाधीश शशिकांत एकनाथराव बांगर ने शनिवार को पारित आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया विनियामकीय चूक और मिलीभगत के सबूत हैं, जिसकी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है. अदालत ने कहा कि वह जांच की निगरानी करेगा और 30 दिनों के भीतर (मामले की) स्थिति रिपोर्ट मांगी गई है. अदालत ने आदेश में यह भी कहा है कि आरोपों से संज्ञेय अपराध का पता चलता है, जिसके लिए जांच जरूरी है.

इसमें कहा गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की निष्क्रियता के कारण सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) के प्रावधानों के तहत न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है. बुच के अलावा जिन अन्य अधिकारियों के खिलाफ अदालत ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है, उनमें बीएसई के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) सुंदररामन राममूर्ति, इसके तत्कालीन चेयरमैन और जनहित निदेशक प्रमोद अग्रवाल और सेबी के तीन पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी और कमलेश चंद्र वार्ष्णेय शामिल हैं.

शिकायतकर्ता सपन श्रीवास्तव, जो एक मीडिया रिपोर्टर हैं, ने कथित अपराधों की जांच की मांग की थी, जिसमें बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी, विनियामक उल्लंघन और भ्रष्टाचार शामिल है. शिकायतकर्ता ने दावा किया कि सेबी के अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्य में विफल रहे, बाजार में हेरफेर को बढ़ावा दिया, तथा निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करने वाली कंपनी को सूचीबद्ध करने की अनुमति देकर कॉरपोरेट धोखाधड़ी के लिए रास्ता खोला.

शिकायतकर्ता ने कहा कि कई बार पुलिस स्टेशन और संबंधित नियामक निकायों से संपर्क करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई. भारत की पहली महिला सेबी प्रमुख बुच पर अमेरिका स्थित शोध एवं निवेश कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने हितों के टकराव के आरोप लगाए थे. उसके बाद राजनीतिक तनाव के बीच बुच ने शुक्रवार को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया. सेबी ने कहा कि वह इस आदेश को चुनौती देने के लिए उचित कानूनी कदम उठाएगा और सभी मामलों में उचित विनियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सेबी ने एक बयान में कहा कि सेबी की पूर्व चेयरपर्सन, तीन वर्तमान पूर्णकालिक सदस्यों और बीएसई के दो अधिकारियों के खिलाफ एसीबी अदालत, मुंबई के समक्ष एक विविध आवेदन दायर किया गया था.

सेबी ने कहा कि हालांकि, ये अधिकारी प्रासंगिक समय पर अपने संबंधित पदों पर नहीं थे, फिर भी अदालत ने बिना कोई नोटिस जारी किए या सेबी को तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने का कोई अवसर दिए बिना आवेदन को अनुमति दे दी. सेबी के बयान के अनुसार कि आवेदक को एक तुच्छ और आदतन मुकदमाकर्ता के रूप में जाना जाता है, जिसके पिछले आवेदनों को अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया था, और कुछ मामलों में जुर्माना भी लगाया गया था.

दो हजार रुपए के नोट पर आया बड़ा अपडेट, RBI की रिपोर्ट कर देगी हैरान

भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि प्रचलन में रहे 2,000 रुपये के 98.18 परसेंट नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं. अब केवल 6,471 करोड़ रुपये के ऐसे नोट जनता के पास है. शनिवार को जारी एक स्टेटमेंट में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2,000 रुपये के नोटों की स्थिति के बारे में जानकारी दी.  RBI ने 19 मई, 2023 को 2000 रुपये के बैंक नोट को प्रचलन से वापस लेने की घोषणा की थी. उस वक्त प्रचलन में इन नोटों का कुल मूल्य 3.56 लाख करोड़ रुपये था. 28 फरवरी, 2025 तक यह आंकड़ा तेजी से घटकर 6,471 करोड़ रुपये रह गया है.

2000 रुपये के नोट जमा कराने की प्रक्रिया

7 अक्टूबर, 2023 तक आप बैंक के ब्रांच में जाकर 2,000 रुपये के नोट बदल सकते थे या जमा कर सकते थे, लेकिन अब जिनके भी पास यह नोट है वे रिजर्व बैंक के 19-निर्गम कार्यालयों में जमा कर सकते हैं. आरबीआई के निर्गम कार्यालय 9 अक्टूबर, 2023 से व्यक्तियों और संस्थाओं से उनके बैंक खातों में जमा करने के लिए 2000 रुपए के नोट स्वीकार कर रहे हैं. देश की जनता के लिए इस प्रॉसेस को और बनाने के लिए लोग किसी भी डाकघर से भारतीय डाक के माध्यम से भी रिजर्व बैंक के इन कार्यालयों को 2000 रुपये के नोट भेजने की भी सुविधा शुरू की गई है, जिन्हें बाद में उनके खातों में जमा करा दिया जाएगा.

क्यों वापस लिए जा रहे 2000 के नोट?

रिजर्व बैंक ने बताया कि प्रचलन से वापस लिए जाने के बावजूद 2,000 रुपये के बैंक नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे. बता दें कि 2,000 रुपये के नोटों को वापस लेना भारतीय रिजर्व बैंक की स्वच्छ नोट नीति का हिस्सा है, ताकि क्षतिग्रस्त, नकली और कम उपयोग किए गए नोटों को प्रचलन से हटाया जा सके.

बढ़ गए एलपीजी के दाम, पहली तारीख को महंगाई का झटका

त्योहारी सीजन में महंगाई का झटका लगा है. होली और रमजान के महीने में ईद से रसोई गैस महंगा हो चुका है. सरकारी तेल कंपनियों ने रसोई गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी का एलान किया है. एक मार्च 2025 यानी आज से 19 किलो वाले कमर्शियल एलपीजी गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी कर दी गई है. इंडियन ऑयल ने एक मार्च से कमर्शियल एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतें में 6 रुपये की बढ़ोतरी कर इसे 1803 रुपये प्रति सिलेंडर कर दिया है जो पहले 1797 रुपये था.

सरकारी तेल कंपनियां महीने की पहली तारीख को रसोई गैस सिलेंडर के दामों की समीक्षा करती हैं. नए महीने की आज से शुरुआत हो रही है जो कि त्योहारी महीना है. इस महीने जहां होली है तो ईद का त्योहार भी इसी महीने है. साथ में रमजान भी 2 मार्च यानी कल से शुरू होने वाला है. इसी महीने शादियां भी है. और इस महीने की पहली तारीख से ही सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर के दाम बढ़ा दिए हैं. 19 किलो वाले कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में 6 रुपये का इजाफा कर दिया गया है. दिल्ली में अब नई कीमत 1803 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई है जो पहले 1797 रुपये थी.

आपके शहर में आज से ये दाम

दिल्ली में 19 किलो वाले सिलेंडर के दाम 1797 रुपये से बढ़ाकर 1803 रुपये कर दिया गया है. कोलकाता में 1907 रुपये से बढ़कर नई कीमत 1913 रुपये हो गई है. मुंबई में 1749.50 रुपये से बढ़कर कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर की नई कीमत 1755.50 रुपये हो गई है. चेन्नई में 1959 रुपये से बढ़कर अब  1965 रुपये में कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर गैस मिलेगा.

घरेलू सिलेंडरों के दाम में बदलाव नहीं 

आज से कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर के दामों में भले ही इजाफा कर दिया गया हो लेकिन घरेलू एलपीजी सिलेंडरों के दाम में कोई बदलाव नहीं हुआ है. लेकिन कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी का असर रेस्टोरेंट में भोजन करने पर हो सकता है. रेस्टोरेंट अपने खाने के रेट्स को बढ़ा सकते हैं.

SEBI के नए चीफ होंगे तुहिन पांडे, बुच की जगह संभालेंगे जिम्मेदारी; इतनी मिलेगी सैलरी

नई दिल्ली: भारत सरकार ने वित्त सचिव तुहिन कांत पांडे को पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का 11वां अध्यक्ष नियुक्त किया है. बता दें, तुहिन ओडिशा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी हैं, जो माधवी पुरी बुच का स्थान लेंगे. माधबी का तीन वर्ष का कार्यकाल आज शुक्रवार (28 फरवरी) को समाप्त हो रहा है.

गुरुवार देर शाम जारी एक सरकारी आदेश के अनुसार, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने वित्त सचिव और राजस्व विभाग के सचिव तुहिन कांत पांडेय की सेबी अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति को मंजूरी दी. आदेश में कहा गया है कि पांडे की नियुक्ति उनके कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए की गई है.

पांडे ऐसे समय में सेबी के प्रमुख का पद संभाल रहे हैं, जब विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की निकासी के बाद बाजार में मंदी का दबाव देखने को मिल रहा है. जनवरी से अब तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है. 1987 बैच के आईएएस अधिकारी वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग को संभालने वाले सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं. पांडे निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सचिव थे. डीआईपीएएम वित्त मंत्रालय का एक विभाग है जो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकारी इक्विटी का प्रबंधन करता है, साथ ही सार्वजनिक उद्यम विभाग (डीपीई) भी इसका प्रबंधन करता है.

उन्होंने 9 जनवरी को राजस्व विभाग का कार्यभार संभाला, जब उनके पूर्ववर्ती संजय मल्होत्रा ​​भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर बन गए. पांडे ने 2025-26 के बजट को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें मध्यम वर्ग को कुल 1 लाख करोड़ रुपये की कर राहत दी गई. वे नए आयकर विधेयक के मसौदे को तैयार करने में भी शामिल थे, जो 64 साल पुराने आयकर अधिनियम, 1961 की जगह लेगा.

निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) में अपने पांच साल से अधिक के कार्यकाल (24 अक्टूबर, 2019 से 8 जनवरी, 2025) में, पांडे ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (पीएसई) नीति को लागू करते हुए सीपीएसई के विनिवेश को आगे बढ़ाया, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में पीएसई में सरकार की उपस्थिति को कम करना था. वहीं, एयर इंडिया के निजीकरण में पांडे की अहम भूमिका रही थी. 8 अक्टूबर, 2021 को सरकार ने टाटा समूह को एयर इंडिया के लिए विजेता बोलीदाता घोषित किया. समूह ने 18,000 करोड़ रुपये की बोलियां लगाई थीं. 27 जनवरी, 2022 को टाटा समूह ने एयर इंडिया का स्वामित्व ले लिया.

बुढ़ापे का सहारा बन सकता है LIC का स्मार्ट पेंशन प्लान, किसे मिलेगा फायदा, जानिए हरेक बात

नई दिल्ली: भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने LIC स्मार्ट पेंशन योजना पेश की है. यह योजना व्यक्तियों और समूहों के लिए एक गैर-भागीदारी, गैर-लिंक्ड योजना के रूप में बनाया गया है, जो बचत और तत्काल वार्षिकी लाभों पर ध्यान केंद्रित करती है. इस योजना में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के ग्राहकों के लिए तत्काल वार्षिकी लाभों तक पहुंचने के लिए व्यवस्थाएं भी शामिल हैं.

LIC की स्मार्ट पेंशन योजना क्या है?

LIC की स्मार्ट पेंशन योजना एक गैर-भागीदारी, गैर-लिंक्ड, बचत और तत्काल वार्षिकी योजना है जो सेवानिवृत्त लोगों को लगातार आय देती है. इसमें सिंगल एंड ज्वाइंट लाइफ एन्युटी के लिए अलग-अलग वार्षिकी विकल्प शामिल हैं.

LIC स्मार्ट पेंशन योजना कौन खरीद सकता है?

यह योजना 18 से 100 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है, जिसमें वार्षिकी विकल्प के अनुसार आयु पात्रता अलग-अलग होती है.

इस योजना के तहत कौन से एन्युटी विकल्प उपलब्ध हैं?

  • सिंगल लाइफ एन्युटी- एन्युइटीधारक के पूरे जीवनकाल में नियमित एन्युइटी भुगतान देता है.
  • ज्वाइंट लाइफ एन्युइटी- प्राइमरी और सेकेंडरी एन्युइटीधारकों दोनों के लिए निरंतर एन्युइटी भुगतान सुनिश्चित करता है.

एलआईसी की स्मार्ट पेंशन योजना की विशेषताएं

सिंगल प्रीमियम इमिडिएट एन्युटी प्लानआपकी आवश्यकताओं के अनुरूप एन्युटी विकल्पों की विस्तृत सीरीजसिंगल लाइफ एन्युटी और ज्वाइंट लाइफ एन्युटी विकल्पों में से चुनने की सुविधाएन्युटी भुगतान का तरीका – वार्षिक, हाफ-इयरली, क्वार्टरली और मासिक